Raghav

Contd…..

2.

उसकी उम्र सत्ताईस बरस है। वह राघव है, एक ‘डॉक्टर’। कल रात ही उसने अपनी ‘माँ’ का ऑपरेशन किया है; अपनी सौतेली माँ का। 

राघव नौ वर्ष का था और मजे से गाँव भर में गुल्ली-डंडा खेला फिरता था और इसी अवस्था में उसकी माँ एक लम्बी बीमारी से जूझती हुई ठंडी पड़ गयी। घर में लोगों का जमावड़ा शुरू हुआ। लोगों के बीच तर्क-वितर्क होने लगे पर इस सबसे अंजान वह अबोध रग्घू यही सोच रहा था कि इतने सारे लोग आखिर उसके घर आये ही क्यों हैं ?

माँ की तेरहवीं हुई। रग्घू और उसका बाप मेवाराम सूने-सूने से रहने लगे। रग्घू को माँ जैसा प्यार देने के लिये मेवाराम ने रमा से शादी कर ली। मेवा की दूसरी शादी क्या हुई उसके बेटे रग्घू के बुरे दिन आ गये। रमा रूप की धनी थी और रूप व गर्व तो साथ-साथ ही चलते हैं इसलिए रमा कोई भी बड़ा काम न करती। रमा के आते ही रग्घू को गृहस्थी में जुतना पड़ा। सानी करना, गोबर निकालना, खेत में हल चलाना जैसे काम राघव करने लगा।  

सबल की बात सभी सुनते हैं, निर्बल की शिकायतों को कोई नहीं सुनता। राघव ने एकाध बार मेवाराम से शिकायत की पर मेवाराम खुद निस्सहाय थे। वे रमा से कुछ कहते तो वो अपने वाक् प्रहार से उसे चुप कर देती।  मेवाराम भी मन मसोसकर रह जाते।  नतीजा यह हुआ कि राघव ने अब शिकायतें करना छोड़ दिया। अपना रोना रोएं तो किसके सामने?

धीरे-धीरे इसी उपापोह में एक साल गुजर गया। राघव को अब ये समझ आने लगा कि उसकी मां किस बीमारी से मरी। उसने मन-ही-मन ठान लिया अब इस बीमारी से किसी और को मरने न दूंगा। इच्छा और ज्ञान का चोली दामन का साथ है। रग्घू को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए पड़ने की जरुरत थी जो उसके लिए रेगिस्तान में पानी ढूंढने जैसा था।  पर रेगिस्तान में भी नखलिस्तान तो होते ही हैं। राघव ने अपनी इच्छा अपने पिता से कह दी। मेवाराम कुछ कहते इससे पहले ही रमा बाहर निकली और देहरी से ही उचककर बोली-

रमा- हुँह! अब ये एक नयी नौटंकी है। घर में भुंजी भांग तक नहीं है और इसे पढ़ने की सूझी है। इससे अच्छा तो मेहनत मजदूरी करें। कम से कम घर में दो पैसे तो आयेंगे। 

मेवाराम – लेकिन रग्घू अगर पढ़ना चाहता है तो इसमें बुरा ही क्या है?

रमा – अरे ये पढ़ना-बढ़ना तो एक ढोंग है, मैं सब जानती हूँ; कामचोरी का नया बहाना है। बस !

मेवाराम (चिल्लाकर) – रमा ! रग्घू क्या पहले से ही कम काम करता है। 

रमा (कुढ़कर) – तो चिल्लाते किस पर हो जी। मुझे कौन मोल ले लिया है। किसी की आसरैत नहीं हूँ। सीना फाड़कर चौका- मवेशी का काम करती हूँ। जरा सा हाथ बंटाने में दर्द तो नहीं होता।

……to be continued